विविध >> भाजपा : हिन्दुत्व और मुसलमान भाजपा : हिन्दुत्व और मुसलमानवेद प्रताप वैदिक
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‘‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’’ अपने ढंग की अनूठी कृति है...
‘‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’’
अपने ढंग की अनूठी कृति है। इस विषय का यह पहला मौलिक और विचारोत्तेजक
ग्रंथ है। उक्त तीनों मुद्दों और उनके आपसी संबंधों पर जितनी गहराई और
जितने कोणों से विद्वान लेखक ने विचार किया है, अब तक किसी भी ग्रंथ में
नहीं किया गया है।
भाजपा का असली संकट क्या है, उसका समाधान क्या है, उसका भविष्य कैसा है, वह कहीं कांग्रेस की कार्बन-कॉपी तो नहीं बन गई है, संघ और भाजपा के बीच अतर्द्वन्द्व के मुद्दे कौन-कौन से हैं, आदि अनेक प्रश्नों पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
सावरकर का हिंदुत्व अब कितना प्रासंगिक रह गया है? उसमें से क्या घटाया और क्या जोड़ा जाए, इस जटिल और विवादास्पद विषय पर डॉ. वैदिक ने जो मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं, वे भाजपा ही नहीं, 21वीं सदी के भारत के लिए भी ध्यातव्य हैं। हिंदुत्व और इस्लाम के नाम पर चले अभियानों पर लेखक के जिन बेबाक निबंधों ने देश की तत्कालीन राजनीति पर सीधा असर डाला था वे भी ग्रंथ में संकलित किए गए हैं। इस ग्रंथ मे कुछ निबंध ऐसे भी हैं, जिनके बारे में आपको लगेगा कि वे अपने आप में एक-एक ग्रंथ के बराबर हैं।
मुस्लिम राजनीति और मुसलमानों के प्रति भाजपा के रवैए पर भी लेखक ने अपनी दो-टूक राय जाहिर की है। मुसलमान भारतीय इतिहास को कैसे देखें और शेष भारत मुसलमानों को कैसे देखे, आदि अत्यंत पेचीदा और नाजुक मुद्दों पर भी लेखक ने अपने निर्भीक विचार प्रस्तुत किए हैं।
डॉ. वैदिक कोरे विचारक और पत्रकार नहीं हैं। उन्होंने देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका अदा की है। पिछले 50 वर्षों में वे अनेक आंदोलनों के सूत्रधार रहे हैं। दलों की राजनीति से ऊपर रहते हुए भी देश के सभी शीर्ष नेताओं से उनके घनिष्ठ संबंध रहे हैं। ‘‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर डॉ. वैदिक के ये निबंध हमारे राजनेताओं, विद्वानों, पत्रकारों और प्रबुद्ध पाठकों के लिए दिशा-बोधक और उपयोगी सिद्ध होंगे।
भाजपा का असली संकट क्या है, उसका समाधान क्या है, उसका भविष्य कैसा है, वह कहीं कांग्रेस की कार्बन-कॉपी तो नहीं बन गई है, संघ और भाजपा के बीच अतर्द्वन्द्व के मुद्दे कौन-कौन से हैं, आदि अनेक प्रश्नों पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
सावरकर का हिंदुत्व अब कितना प्रासंगिक रह गया है? उसमें से क्या घटाया और क्या जोड़ा जाए, इस जटिल और विवादास्पद विषय पर डॉ. वैदिक ने जो मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं, वे भाजपा ही नहीं, 21वीं सदी के भारत के लिए भी ध्यातव्य हैं। हिंदुत्व और इस्लाम के नाम पर चले अभियानों पर लेखक के जिन बेबाक निबंधों ने देश की तत्कालीन राजनीति पर सीधा असर डाला था वे भी ग्रंथ में संकलित किए गए हैं। इस ग्रंथ मे कुछ निबंध ऐसे भी हैं, जिनके बारे में आपको लगेगा कि वे अपने आप में एक-एक ग्रंथ के बराबर हैं।
मुस्लिम राजनीति और मुसलमानों के प्रति भाजपा के रवैए पर भी लेखक ने अपनी दो-टूक राय जाहिर की है। मुसलमान भारतीय इतिहास को कैसे देखें और शेष भारत मुसलमानों को कैसे देखे, आदि अत्यंत पेचीदा और नाजुक मुद्दों पर भी लेखक ने अपने निर्भीक विचार प्रस्तुत किए हैं।
डॉ. वैदिक कोरे विचारक और पत्रकार नहीं हैं। उन्होंने देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका अदा की है। पिछले 50 वर्षों में वे अनेक आंदोलनों के सूत्रधार रहे हैं। दलों की राजनीति से ऊपर रहते हुए भी देश के सभी शीर्ष नेताओं से उनके घनिष्ठ संबंध रहे हैं। ‘‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर डॉ. वैदिक के ये निबंध हमारे राजनेताओं, विद्वानों, पत्रकारों और प्रबुद्ध पाठकों के लिए दिशा-बोधक और उपयोगी सिद्ध होंगे।
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